(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

सोमवार, 31 जनवरी 2011

ऐसे चलें-बैठें कि सेहत न रूठे

अटेंशन, छाती बाहर, कंधे पीछे... स्कूलों में असेंबली के दौरान ये कमांड सुनते बड़े होते हैं हम सभी, लेकिन स्कूल से निकलते ही इन शब्दों को पीछे छोड़ देते हैं। ज्यादातर लोग मानते हैं कि यह सेना, पुलिस या फिर मॉडलिंग से ताल्लुक रखनेवाले लोगों के काम की चीज है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि अच्छा पॉश्चर (मुद्रा) हमारी पर्सनैलिटी में निखार तो लाता ही है, हमें कई बीमारियों से भी बचाए रखता है। अच्छे पॉश्चर के फायदे और उसे पाने के तरीके एक्सपर्ट्स की मदद से बता रही हैं प्रियंका सिंह : कीर्ति और श्रुति जुड़वां बहनें हैं। दोनों देखने में बिल्कुल एक जैसी हैं, लेकिन जब कीर्ति चलती हैं तो सबकी निगाहें उन पर टिक जाती हैं, जबकि श्रुति लोगों पर खास असर नहीं छोड़ पाती। फर्क सिर्फ दोनों के पॉश्चर का है, जो उनकी पर्सनैलिटी को भी बदलकर रख देता है। कीर्ति का पॉश्चर एकदम सही और सधा हुआ है, जबकि श्रुति झुककर चलती हैं। दरअसल, पॉश्चर हमारी पर्सनैलिटी को तो निखारता ही है, हमें कई बीमारियों से भी दूर रखता है। दिक्कत यह है कि हममें से ज्यादातर पॉश्चर सुधारने के लिए कोई कोशिश नहीं करते। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बमुश्किल 15-20 फीसदी लोगों का ही पॉश्चर सही होता है। पॉश्चर की अहमियत चलते, उठते, बैठते हुए हमारे शरीर की मुद्रा यानी हाव-भाव पॉश्चर कहलाता है। ऐसा पॉश्चर, जिसमें मसल्स का इस्तेमाल बैलेंस्ड तरीके से हो, सबसे सही माना जाता है। मसलन अगर हम खड़े हैं तो यह जरूरी है कि हमारा सिर, धड़ और टांगे, तीनों एक सीध में एक के ऊपर एक हों। इससे शरीर के किसी भी हिस्से पर ज्यादा दबाव नहीं होगा। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर कुछ ईंटें एक के ऊपर रखी हैं तो उन्हें किसी सहारे की जरूरत नहीं होगी, जबकि अगर वे टेढ़े-मेढ़े ढंग से रखी गई हैं तो उन्हें सहारे की जरूरत पड़ती है। कमर या कंधे झुके हों या हिप्स (नितंब) पीछे को निकलें हों या फिर सीना बहुत ज्यादा आगे को निकला हो, यानी जिस पॉश्चर में मसल्स का सही इस्तेमाल नहीं होता, उसे खराब पॉश्चर कहा जाता है। जब हम शरीर को साइड से देखते हैं तो हमें तीन कर्व नजर आते हैं। पहला गर्दन के पीछे, दूसरा कमर के ऊपरी हिस्से में और तीसरा लोअर बैक में। पहला और तीसरा कर्व उलटे सी (c) की तरह नजर आते हैं, जबकि दूसरा कर्व सीधा सी (c) होता है। दूसरे कर्व में ज्यादा मूवमेंट नहीं होता, इसलिए उसमें दिक्कत भी कम ही आती है, जबकि पहला और तीसरा कर्व सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस/ स्पॉन्डिलोसिस और कमर दर्द की वजह बन सकता है। इसी तरह, हम इंसानों में रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) का रोल काफी ज्यादा होता है। मूवमेंट के साथ-साथ वजन उठाने का भी काम करती है हमारी रीढ़। इसी रीढ़ में होते हैं 24 वटिर्ब्रा, जिनके बीच में शॉक ऑब्जर्वर होते हैं, जो डिस्क कहलाते हैं। हमारे शरीर का वजन डिस्क के बीच से जाना चाहिए लेकिन जब यह साइड से जाने लगता है तो दर्द शुरू हो जाता है। लेकिन अगर हम पॉश्चर पर ध्यान दें, तो इस तरह की परेशानियों से काफी हद तक बचा जा सकता है। सही पॉश्चर की खासियत सही पॉश्चर वह है, जिसमें हमारी मसल्स की लंबाई नॉर्मल हो यानी किसी मसल को न तो जबरन खींचा जाए और न ही उसे ढीला छोड़ा जाए। अगर कोई लगातार गर्दन को झुकाकर बैठता है तो गर्दन में दर्द हो सकता है। यहां तक कि कई बार अडेप्टिव शॉर्टनिंग यानी आगे की मसल्स छोटी हो जाती हैं। तब स्ट्रेचिंग कर मसल्स को नॉर्मल किया जाता है। हमारे यहां अक्सर लड़कियां झुककर चलती हैं। वैसे, कई लोग सही पॉश्चर का मतलब मिलिट्री पॉश्चर से लगा लेते हैं, जिसमें कंधों और गर्दन को बहुत ज्यादा पीछे खींचा जाता है। यह सही नहीं है। इसमें रीढ़ की हड्डी के पीछे वाले भागों पर ज्यादा प्रेशर आ जाता है। साइड से देखें तो कान, कंधे, हिप्स और टखने से थोड़ा आगे का हिस्सा अगर एक लाइन में आते हैं तो अच्छा पॉश्चर बनता है। सामने से देखें तो सिर सामने ऊपर की ओर, ठोड़ी फर्श के लेवल में, सीना सामने की ओर, कंधे आराम की मुद्रा में और पेट का निचला हिस्सा सपाट हो तो अच्छा पॉश्चर कहा जाएगा। कैसे-कैसे पॉश्चर स्वे बैक पॉश्चर: पैरों के ऊपर, कमर सीधी होने के बजाय पीछे की ओर झुकी होती है। मिलिट्री पॉश्चर: दोनों कंधे पीछे की तरफ, सीना बाहर निकला हुआ। हाइपर लॉडोर्टिक पॉश्चर: प्रेग्नेंट महिलाओं या बहुत मोटे लोगों का ऐसा पॉश्चर होता है। इसमें तोंद बहुत बड़ी और कमर काफी अंदर की तरफ होती है। काइसोटिक पॉश्चर: इसमें कमर का ऊपरी हिस्सा थोड़ा बाहर (कूबड़) निकल जाता है। टीबी के मरीजों और जवान लड़के व लड़कियों में होता है। स्कोल्योटिक पॉश्चर: वर्टिब्रा सीधी होने के बजाय साइड को मुड़ जाती है। यह पॉश्चर काफी कॉमन होता है। गलत पॉश्चर की वजहें एनकायलोसिस (जोड़ों में जकड़न), स्पॉन्डिलोसिस (गर्दन में दर्द), कमर का टेढ़ापन, रिकेट्स, ऑस्टियोपोरॉसिस या पोलियो जैसी बीमारियां। हड्डियों में पैदाइशी विकार। स्पाइनल कोड में विकार। आनुवांशिक कारण। झुककर चलने की आदत, खासकर लड़कियों में। घंटों एक ही जगह बैठकर कंप्यूटर पर काम करना। डेंटिस्ट, सर्जन आदि का लंबे समय तक झुककर काम करना। उलटे-सीधे तरीके से लेटकर टीवी देखना। कंधे और कान के बीच फोन लगाकर एक ओर सिर झुकाकर लंबी बातें करना। किचन में नीचे स्लैब पर काम करना। प्रेस करते हुए पॉश्चर का ध्यान न रखना। प्रेग्नेंसी में स्पाइन का पीछे जाना, जिसे लॉडोर्स कहते हैं। बढ़ती उम्र के साथ आमतौर पर शरीर कुछ झुक जाता है। आरामतलबी और रिलैक्स के नाम पर गलत पॉश्चर अपनाना। गलत पॉश्चर से नुकसान गर्दन और कमर संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं, मसलन सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस/स्पॉन्डिलोसिस या कमर दर्द आदि। डिस्क प्रोलेप्स या डिस्क से जुड़ी दूसरी बीमारियां हो सकती हैं। जॉइंट्स में टूट-फूट यानी ऑर्थराइटिस हो सकता है। थकने की वजह से मसल्स अपना पूरा काम नहीं कर पाएंगी। मांसपेशियों में गांठें या सूजन आ जाती है। महिलाओं को किचन में काम करने की वजह से कंधों और कमर में दर्द जल्दी हो सकता है। रिपिटेड स्ट्रेस इंजरी हो सकती है, यानी किसी एक ही अंग के ज्यादा इस्तेमाल से उसमें दिक्कत आ सकती है। सही पॉश्चर के फायदे रीढ़ के जोड़ों को एक साथ जोड़े रखनेवाले लिगामेंट्स पर प्रेशर कम होता है। रीढ़ को किसी असामान्य स्थिति में फिक्स होने से बचाता है। मसल्स का सही इस्तेमाल होने से थकान नहीं होगी। कमर दर्द और जोड़ों के दर्द की आशंका कम होती है। देखने में व्यक्ति ज्यादा आकर्षक लगता है। सही पॉश्चर के लिए क्या जरूरी सही पॉश्चर के लिए मसल्स में अच्छी लचक, जोड़ों में सामान्य मोशन, र्नव्स का सही होना, रीढ़ के दोनों तरफ की मसल्स पावर का बैलेंस्ड होना जरूरी है। साथ ही, हमें अपने पॉश्चर की जानकारी भी होनी चाहिए और सही पॉश्चर क्या है, यह भी मालूम होना चाहिए। थोड़ा ध्यान देने और थोड़ी प्रैक्टिस के बाद गलत पॉश्चर को सुधारा जा सकता है। खड़े होने या चलने का सही तरीका सिर सामने ऊपर की ओर, ठोड़ी फर्श के लेवल में, सीना सामने की ओर, कंधे आराम की मुद्रा में और पेट का निचला हिस्सा सपाट हो। सिर या कंधों को पीछे, आगे या साइड में न झुकाएं। कंधे झुकाकर न चलें, न ही शरीर को जबरन तानें। कानों के लोब्स कंधों के मिडल के साथ एक लाइन में आएं। कंधों को पीछे की तरफ रखें, घुटनों को सीधा रखें और बैक को भी सीधा रखें। जमीन पर अपने पंजों को सपाट रखें। पंजे उचकाकर न चलें। एक पैर पर न खड़े हों। खड़े होते हुए दोनों पैरों के बीच में थोड़ा अंतर रखें। इससे पकड़ सही रहती है। चलते हुए पहले एड़ी रखें और फिर पूरा पंजा। पैरों को पटक कर या घुमाकर न चलें। चलते समय बहुत ज्यादा न हिलें। बैठने का सही तरीका सबसे पहले सही कुर्सी का चुनाव करें। यह पॉश्चर के लिए काफी अहम हैं। ऑफिस में कुसीर् को अपने मुताबिक एडजस्ट कर लें। हो सके तो अपने पॉश्चर के अनुसार कुर्सी तैयार कराएं। ध्यान रखें कि कुसीर् की सीट इतनी बड़ी हो कि बैठने के बाद घुटने और सीट के बीच बस तीन-चार इंच की दूरी हो, यानी सीट चौड़ी हो। बैठते हुए पूरी थाइज को सपोर्ट मिलना चाहिए। हैंड रेस्ट एल्बो लेवल पर होना चाहिए। बैक रेस्ट 10 डिग्री पीछे की तरफ झुका हो। कमर को सीधा रखकर और कंधों को पीछे की ओर खींचकर बैठें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अकड़कर बैठें। कमर को हल्का-सा कर्व देकर बैठें। कुसीर् पर बैठते हुए ध्यान रहे कि कमर सीधी हो, कंधे पीछे को हों और हिप्स कुसीर् की पीठ से सटे हों। बैक के तीनों नॉर्मल कर्व बने रहने चाहिए। एक छोटा तौलिया भी लोअर बैक के पीछे रख सकते हैं या फिर लंबर रोल का इस्तेमाल कर सकते हैं। अपने घुटनों को सही एंगल पर झुकाएं। घुटनों को क्रॉस करके न बैठें। बैठते हुए घुटने या तो हिप्स की सीध में हों या थोड़ा ऊपर हों। पैरों के नीचे छह इंच ऊंचा स्टूल भी रख सकते हैं। बैठकर जब उठें तो कमर को आगे की तरफ झुकाएं, पैरों को पीछे की तरफ लेकर जाएं। ऐसा करने पर पंजे, घुटने और सिर जब एक लाइन में आ जाएं तो उठें। कंप्यूटर पर काम करते हुए कंप्यूटर पर काम करते वक्त कुर्सी की ऊंचाई इतनी रखें कि स्क्रीन पर देखने के लिए झुकना न पड़े और न ही गर्दन को जबरन ऊपर उठाना पड़े। कुहनी और हाथ कुर्सी पर रखें। इससे कंधे रिलैक्स रहेंगे। कुर्सी के पीछे तक बैठें। खुद को ऊपर की तरफ तानें और अपनी कमर के कर्व को जितना मुमकिन हो, उभारें। कुछ सेकंड के लिए रोकें। अब पोजिशन को थोड़ा रिलैक्स करें। यह एक अच्छा सिटिंग पॉश्चर होगा। अपने शरीर का भार दोनों हिप्स पर बराबर बनाए रखें। डेस्कटॉप उस पर काम करनेवाले व्यक्ति के मुताबिक तैयार होना चाहिए। कुसीर् ऐसी हो, जो लोअर बैक को सपोर्ट करे। पैरों के नीचे सपोर्ट के लिए छोटा स्टूल या चौकी रखें। किसी भी पॉजिशन में 30 मिनट से ज्यादा लगातार न बैठें। बैठकर काम करते हुए या पढ़ते हुए हर घंटे के बाद पांच मिनट का ब्रेक लेना चाहिए। दो घंटे के बाद तो जरूर ब्रेक लें। रोजाना गर्दन की एक्सरसाइज करें। ब्यौरा नीचे देखें। घूमने वाली कुर्सी पर बैठे हैं तो कमर को घुमाने की बजाय पूरे शरीर को घुमाएं। ड्राइव करते हुए सही पॉश्चर कमर के नीचे वाले हिस्से में सपोर्ट के लिए एक बैक सपोर्ट (छोटा तौलिया या लंबर रोल) रखें। घुटने हिप्स के बराबर या थोड़े ऊंचे हों। सीट को स्टेयरिंग के पास रखें ताकि बैक के कर्व को सपोर्ट मिल सके। इतना लेग-बूट स्पेस जरूर हो, जिसमें आराम से घुटने मुड़ सकें और पैर पैडल पर आराम से पहुंच सकें। सोने का सही तरीका ऐसी पोजिशन में सोने की कोशिश करें, जिसमें आपकी बैक का नेचरल कर्व बना रहे। पीठ के बल सोएं, तो घुटनों के नीचे पतला तकिया या हल्का तौलिया रख लें। जिनकी कमर में दर्द है, वे जरूर ऐसा करें। घुटनों को हल्का मोड़कर साइड से भी सो सकते हैं लेकिन ध्यान रखें कि घुटने इतने न मोड़ें कि वे सीने से लग जाएं। पेट के बल सोने से बचना चाहिए। इसका असर पाचन पर पड़ता है। साथ ही, कमर में दर्द और अकड़न की आशंका भी बढ़ती है। कमर दर्द है तो पेट के बल बिल्कुल नहीं सोना चाहिए। कभी भी बेड से सीधे न उठें। पहले साइड में करवट लें, फिर बैठें और उसके बाद उठें। गद्दा और तकिया गद्दा सख्त होना चाहिए। कॉयर का गद्दा सबसे अच्छा है। रुई का गद्दा भी इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि उसमें स्पंज इफेक्ट बचा हो। ऐसा न हो कि वह 10-12 साल पुराना हो और पूरी तरह चपटा हो गया हो। जमीन पर सोने से बचना चाहिए, क्योंकि सपाट और सख्त जमीन पर सोने से रीढ़ के कर्व पर प्रेशर पड़ता है। बहुत ऊंचा तकिया लेने या तकिया बिल्कुल न लेने से पॉश्चर में प्रॉब्लम हो सकती है, खासकर उन लोगों को, जिनकी मसल्स कमजोर हैं। अगर आप सीधा सोते हैं तो बिल्कुल पतला तकिया ले सकते हैं। करवट से सोते हैं तो 2-3 इंच मोटाई का नॉर्मल तकिया लें। तकिया बहुत सॉफ्ट या हार्ड नहीं होना चाहिए। फाइबर या कॉटन, कोई भी तकिया ले सकते हैं। ध्यान रहे कि कॉटन अच्छी तरह से धुना गया हो और उसमें नरमी बाकी हो। तकिया इस तरह लगाएं कि कॉन्टैक्ट स्पेस काफी ज्यादा हो और कंधे व कान के बीच के एरिया को सपोर्ट मिले। कंधों को तकिया के ऊपर नहीं रखना चाहिए। जिनकी गर्दन में दर्द है, उन्हें भी पतला तकिया लगाना चाहिए। एक्सरसाइज और योग कमर की मांसपेशियां कमजोर हों तो पॉश्चर गड़बड़ हो जाता है। ऐसे में हम कमर को झुकाकर चलने लगते हैं। हमें लगता है कि इससे आराम मिल रहा है लेकिन इससे हमारी जीवनी शक्ति और प्राणऊर्जा बाधित हो जाती है यानी हमारी सेहत जितनी बेहतर होनी चाहिए, उतनी नहीं होती। झुककर चलने या बैठने से निराशा भी आती है। ऐसे में ध्यान देकर अपना पॉश्चर सुधारना जरूरी है। इसके लिए नीचे लिखी एक्सरसाइज और आसन फायदेमंद हैं : जो लोग डेस्क जॉब में हैं, उन्हें रस्सी कूदना, सीढि़यां चढ़ना-उतरना, वॉकिंग, जॉगिंग, दौड़ना, स्विमिंग, साइक्लिंग, आदि करना चाहिए। इससे शरीर में लचक बनी रहेगी। ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सरसाइज करते रहना चाहिए। रोजाना स्ट्रेचिंग करें। सुबह पूरी बॉडी को स्ट्रेच करें। ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खिंचें। इससे मसल्स में लचीलापन बना रहता है। कमर और पेट को मजबूती देने वाली एक्सरसाइज करें। ताड़ासन, अर्धचक्रासन, कटिचक्रासन, पवनमुक्तासन, भुजंगासन, अर्धनौकासन, मकरासन, बिलावासन, ऊष्ट्रासन, पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन आदि करें। ये आसन इसी क्रम से किए जाएं तो ज्यादा फायदा होगा। गर्दन को मजबूत बनानेवाली सूक्ष्म क्रियाएं करें। सिर को पूरा गोल घुमाएं। एक बार राइट से लेफ्ट और फिर लेफ्ट से राइट को गर्दन घुमाएं। गर्दन को ऊपर-नीचे भी करें। कंधों को गोल-गोल घुमाएं। हफ्ते में कम-से-कम चार-पांच दिन 40 मिनट में 4 किमी वॉक करें। ऐसे अपनाएं सही पॉश्चर अपने पॉश्चर पर ध्यान दें। थोड़े दिन गौर करना पड़ेगा। बाद में आपको खुद-ब-खुद सही पॉश्चर की आदत बन जाएगी। जितना ध्यान देंगे, उतना जल्दी पॉश्चर सुधरेगा। जहां-जहां आप जाते हैं, मसलन अपने कमरे में, किचन में, ऑफिस में, टायलेट आदि वहां 'कमर सीधी' या 'बैक स्ट्रेट' लिखकर दीवार पर चिपका लें। जो लोग आगे झुककर चलते हैं, वे वॉक करते हुए, हर 10 मिनट में तीन-चार मिनट के लिए अपने हाथों को पीछे बांध लें। इससे पॉश्चर सीधा होता है। स्कूली बच्चे एक कंधे पर बैग टांगने के बजाय दोनों कंधों पर बदलते रहें। लैपटॉप बैग या पर्स भी बदलते रहें। कोशिश करें कि पिट्ठू बैग लें। कोई भी चीज उठाने के लिए कमर से न झुकें, बल्कि घुटने के बल बैठें और फिर चीज उठाएं। किचन में स्लैब की ऊंचाई इतनी हो कि झुककर काम न करना पड़े। बेड पर लेटकर पढ़ने के बजाय कुर्सी-मेज पर पढ़ें। बेड पर आधे लेटकर टीवी न देखें। सही तरीके से बैठें या थक गए हैं तो पूरा लेटकर टीवी देखें। वजन न बढ़ने दें। जिनकी तोंद है, वे खासतौर पर सावधानी बरतें। पोंछा लगाते हुए और कपड़े प्रेस करते हुए ध्यान रखें और उलटी-सीधी दिशा में झुके नहीं। अगर लंबे वक्त से खड़े हैं तो कुछ-कुछ देर बाद पोजिशन बदलें। वजन एक पैर से दूसरे पैर पर डालें। इससे पैरों को आराम मिलता है। 50-55 साल के बाद महिलाओं की हड्डियां कमजोर हो जाती है। उन्हें रोजाना आधा घंटा सूरज की रोशनी में बैठना चाहिए। इसके अलावा, बोन डेक्सा स्कैन कराकर हड्डियों की सघनता जांच लें। अगर जरूरत पड़े तो डॉक्टर की सलाह से कैल्शियम ले सकती हैं। कैसे पहचानें पॉश्चर बैठने पर: चौकड़ी मारकर बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें। जब हमारी कलाई (जहां घड़ी बांधते हैं) घुटने के लेवल पर आती है तो पॉश्चर ठीक है। ध्यान रखें कि घुटने सीधे हों। खड़े होने पर: रोजाना एक मिनट तक शीशे के सामने सीधे खड़े हों। ध्यान रखें कि ठोड़ी शरीर से आगे न निकली हो और दोनों कंधे एक लेवल पर हों। पेट भी सीधा-सपाट हो। कमर किसी तरह झुकी न हो। ऐसे सुधारें पॉश्चर जो लोग डेस्क जॉब ज्यादा करते हैं, वे रोजाना सुबह 2-3 मिनट के लिए दीवार के सहारे सटकर खड़े हो जाएं। सिर, दोनों कंधे, हिप्स और एड़ी (एक-आध इंच आगे भी हो, तो चलेगा) दीवार के सहारे लगकर खड़े हो जाएं। रोजाना 2-3 मिनट प्रैक्टिस करने से पॉश्चर ठीक हो सकता है। पॉश्चर का कमाल आप कैसे चलते हैं, कैसे बैठते हैं, ये बातें आपकी पर्सनैलिटी पर असर डालती हैं, यह सभी जानते हैं लेकिन हाल में एक रिसर्च में यह बात और पुख्ता हुई है। इलिनोइस (अमेरिका) में नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवसिर्टी में हुई इस रिसर्च में 76 स्टूडेंट्स में से आधों को हाथ बांधकर, कंधे झुकाकर और पैर मिलाकर बैठने को कहा गया, जबकि बाकी को पैर फैलाकर और हाथ बाहर की ओर खोलकर बैठने को कहा गया। बंधे हुए पॉश्चर में बैठे लोगों ने हर टास्क में कम नंबर पाए, जबकि दूसरों ने अच्छा परफॉर्म किया। यानी रिसर्च साबित करती है कि अच्छा पॉश्चर कॉन्फिडेंस बढ़ाता है।
एक्सपर्ट्स पैनल डॉ. पी. के. दवे, चेयरमैन, रॉकलैंड हॉस्पिटल डॉ. हर्षवर्धन हेगड़े, एचओडी ऑथोर्पेडिक्स, फोर्टिस हॉस्पिटल डॉ. आई. पी. एस. ओबरॉय, ऑथोर्पेडिक सर्जन, आर्मेटीज हेल्थ इंस्टिट्यूट डॉ. राजीव अग्रवाल, इनचार्ज, न्यूरोफिजियोथेरपी यूनिट, एम्स सुरक्षित गोस्वामी, योग गुरु

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

विश्व बैंक के समाजसेवी- उद्यमी के तलाश...

विश्व बैंक के समाजसेवी- उद्यमी के तलाश...


अगर अहां कोनो एनजीओ चलाबैत छी... समाजसेवा केर काज करय छी... आ फेर एहन काज करि रहल छी जेहि सं अहांक संग समाज के सेहो फायदा भ रहल अछि. लोक के जीवनस्तर सुधरि रहल अछि. तं विश्व बैंक के अहांक तलाश अछि.

एतबे नहि अहां कोनो उद्यम करय चाहय छी. अहां Entrepreneur बनय चाहय छी आ दू साल सं एहि फील्ड मे छी. अहां के पास अपन नव-नव आइडिया अछि. एहि आइडिया सं समाज के बदलय चाहय छी तं फेर अहांक लेल नीक मौका अछि.

विश्व बैंक 1998 सं ‘इंडिया डेवलपमेंट मार्केटप्लेस 2011’ नाम सं एकटा प्रोजेक्ट चलाबैत अछि. एहि प्रोजेक्ट मे अखन धरि दुनियाभर के 8 सय सं बैसि परियोजना के 60 मिलियन अमेरिकी डॉलर अनुदान देल जा चुकल अछि.

भारत मे जेहि परियोजना के विश्व बैंक मदद मिलल अछि... ओहि मे Dhrishtee, Vision Spring आओर Akash Ganga शामिल अछि. एहि परियोजना मे ककरा मदद देल जाएत एकर चयन एकटा प्रतियोगिता सं होएत अछि.

देश मे कइटा विजेता छथिन्ह मुदा अखन धरि बिहार सं कोनो विजेता नहि सामने अएलाह अछि. ई परियोजना बिहार सं सेहो जुड़ल अछि. मुख्य रूप सं ई बिहार... उड़ीसा आओर राजस्थान के लेल अछि.

एहि मे विजेता के चयन दू साल के लेल होएत. एहि दू साल मे विश्व बैंक सं कई तरहक मदद मिलैत अछि. आर्थिक मदद के तौर पर 50 हजार अमेरिकी डॉलर ( करीब साढ़े 22 लाख रुपया ) मिलैत अछि.

एहि मे प्रतियोगिता काफी कड़ा होएत अछि. मुदा विश्व बैंक एहि के लेल करीब 13 विजेता के चयन करत. तेरहों विजेता के करीब साढ़े 22- 22 लाख रुपया मिलत. एहि लेल प्रतियोगिता टफ होए के बादहुं उम्मीद करि सकय छी.

मगर एहि मे कोनो खास व्यक्ति शामिल नहि भ सकैत अछि. कोनो संस्था... संगठने टा अप्लाई करि सकैत अछि. एकरा संग ओ कम सं कम दू साल सं एहि क्षेत्र मे काज करि रहल हो. भारत सरकार सं रजिस्टर्ड हो.

अप्लाई करय वक्त अहां के ई बताबय पड़त कि अहां बिहार... उड़ीसा आओर राजस्थान मे कि करय चाहय छी? अहां एहन कोन नवका प्रोजेक्ट शुरू करय चाहय छी जेहि सं लोक के जीवनस्तर सुधरय... लोक के रोजगार के साधन मिलय?

अहां के एहन बिजनेस मॉ़डल पेश करय पड़त जेहि सं एहि तीनु राज्य के गरीब लोक के रोजगार के साधन उपलब्ध भ सकय. ओ अपना पर आत्मनिर्भर बनि सकय. संगहि संग ओ मॉडल कतेक भरोसमंद अछि. चलय वाला अछि कि नहि?

अहां एक सं बेसि प्रोजेक्ट... मॉडल पेश करि सकय छी... अप्लाई करि सकय छी मुदा ओ एक दोसरा सं लिंक नहि होए. कनिओ मिलैत नहि होए. एक बेर अप्लाई करला के बाद ओहि मे कोनो चेंज नहि होएत ताही लेल सावधानी सं भरब.

ई प्रतियोगिता 10 दिसंबर, 2010 के शुरू भेल आओर अप्लाई करय के आखिरी तारीख अछि 23 जनवरी, 2011. जेहि मे सं 30 टा के चुनल जाएत.... आओर ओहि 30टा मे सं 13 विजेता के घोषणा जयपुर मे 7-8 अप्रैल के कएल जाएत.

APPLY NOW

शनिवार, 15 जनवरी 2011

सख्त नींबू को अगर गरम पानी में कुछ देर के लिए रख दिया जाये तो उसमें से आसानी से अधिक रस निकाला जा सकता है।
महीने में एक बार मिक्सर और ग्राइंडर में नमक डालकर चला दिया जाये तो उसके ब्लेड तेज हो जाते हैं।
नूडल्स उबालने के बाद अगर उसमें ठंडा पानी डाल दिया जाये तो वह आपस में चिपकेंगे नही।
पनीर को ब्लोटिंग पेपर में लपेटकर फ्रिज में रखने से यह अधिक देर तक ताजा रहेगा।
मेथी की कड़वाहट हटाने के लिये थोड़ा सा नमक डालकर उसे थोड़ी देर के लिये अलग रख दें।
एक टीस्पून शक्कर को भूरा होने तक गरम करे। केक के मिश्रण में इस शक्कर को मिला दे। ऐसा करने पर केक का रंग अच्छा आयेगा।
फूलगोभी पकाने पर उसका रंग चला जाता है। ऐसा न हो इसके लिए फूलगोभी की सब्जी में एक टीस्पून दूध अथवा सिरका डाले। आप देखेगी कि फूलगोभी का वास्तविक रंग बरकरार है।
आलू के पराठे बनाते समय आलू के मिश्रण में थोड़ी सी कसूरी मेथी डालना न भूले। पराठे इतने स्वादिष्ट होंगे कि हर कोई ज्यादा खाना चाहेगा।
आटा गूंधते समय पानी के साथ थोड़ा सा दूध मिलाये। इससे रोटी और पराठे का स्वाद बदल जाएगा।
दाल पकाते समय एक चुटकी पिसी हल्दी और मूंगफली के तेल की कुछ बूंदे डाले। इससे दाल जल्दी पक जायेगी और उसका स्वाद भी बेहतर होगा।
बादाम को अगर 15-20 मिनट के लिए गरम पानी में भिगो दें तो उसका छिलका आसानी से उतर जायेगा।
चीनी के डिब्बे में 5-6 लौंग डाल दी जाये तो उसमें चींटिया नही आयेगी।
बिस्कुट के डिब्बे में नीचे ब्लोटिंग पेपर बिछाकर अगर बिस्कुट रखे जाये तो वह जल्दी खराब नही होंगे।
कटे हुए सेब पर नींबू का रस लगाने से सेब काला नही पड़ेगा।
जली हुए त्वचा पर मैश किया हुआ केला लगाने से ठंडक मिलती है।
मिर्च के डिब्बे में थोड़ी सी हींग डालने से मिर्च लम्बे समय तक खराब नही होती।
किचन के कोनो में बोरिक पाउडर छिड़कने से कॉकरोच नही आयेंगे।
लहसुन के छिलके को हल्का सा गरम करने से वो आसानी से उतर जाते हैं।
हरी मिर्च के डंठल को तोड़कर मिर्च को अगर फ्रिज में रखा जाये तो मिर्च जल्दी खराब नही होती।
हरी मटर को अधिक समय तक ताजा रखने के लिए प्लास्टिक की थैली में डालकर फ्रिजर में रख दें।

दौगल चलि जायब गाम -किशन कारीगर

दौगल चलि जाएब गाम।

मनुक्ख दौग रहल अछि मचल अछि आपा-धापी
जतए केकरो कियो ने चिन्ह रहल अछि
एहेन नगर आ पाथर हृद्य सॅं दूर
एखने होइए जे दौगल चलि जाएब गाम।।

लोहाक छड़ आ सीमेंट कंक्रीट सॅं बनल
ओना तऽ ई एकटा आधुनिक महानगर अछि
मुदा शहरक एहि आपा-धापी मे
मनुक्खक हृद्य जेना पाथर भऽ गेल अछि।।

किएक मचल अछि आधुनिकताक ई हरविड़ो ?
कि भेटत एहि सॅं कियो ने किछू बूझि रहल अछि
जेकरे दूखू रूपैयाक ढ़ेरी लेल अपसियॉंत रहैत अछि
पाथर हृद्य मनुक्ख मानवताक मूल्य केने अछि जीरो।।

लिफट लागल उ दसमंजिला मकान
एक्के फलैट पर रहितौ लगैत छी अनजान
ओ अड़ोसी हम पड़ोसी मुदा
एक दोसर के नहि कोनो जान-पहचान।।

कहू एहेन कंक्रीटक शहर कोन काजक
आधुनिकताक काल कोठरी अछि साजल
एहि चमचमाईत कोठरी मे कियो ने केकरो चिन्ह रहल अछि
रूपैयाक खातिर आबक मनुक्ख की कि ने कऽ रहल अछि।।

अतियौत-पितियौत ममियौत-पिसियौत जेकरा देखू
अपने मे मगन चिन्हा परिचे सॅं कोन काज
आधुनिकताक काल कोठरी मे आब
अनचिन्हार भऽ गेलाह जन्मदाता बूढ़ माए-बाप।।

शहरक एहेन अमानवीय आपा-धापी देखि केॅं
पसीज गेल हमर हृद्य
एहेन अनचिन्हार नगर छोड़ि केॅं मोन होइए
एखने आब दौगल चलि जाएब गाम।।

हे यौ भलमानुस आधुनिक मनुक्ख
एहेन अनचिन्हार नगर ने नीक
एहि कंक्रीटक महल सॅ एक बेर तऽ देखू
गामक कोनो टूटली मरैया बड्ड नीक।।

मनुक्ख एक दोसर के चिन्ह रहल अछि
चिड़ै चुनमून चॅू चॅू कए रहल अछि
रस्ता-पेरा निश्छल प्रेमक धार बहि रहल अछि
हरियर-हरियर खेत-पथार आई सोर कऽ रहल अछि।।

टूटलाहा टाट खर-पतारक किछू घर
जतए नहि कियो अनचिन्हार नहि कोनो डर
चौवटिया लग फरैत अछि खूम आम
एहने नगर के औ बाबू लोग कहैत छैक गाम।।


लेखक:- किशन कारीग़र


परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय ‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

हमारा स्कूल

हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
 
खिलती  है  यहाँ  नित दिन  शिक्षा का नया  फुल
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
सुबह - सुबह  होता यहाँ  माँ शारदा की बिन्ती
जिससे  मिलता  बच्चो को  मन  की शांति
 
न गंदगी ना कोई  शर्मंदिगी ना कही  पर हैं धुल
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
मिलती  है यहाँ  पर  प्रतिदिन  नयी  संस्कार
गरीब  हो या  आमिर  सब को है  पूरा अधिकार
 
स्नेह  और  प्यार  से भरा है  भरपूर
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
दूर - दूर  से शिक्षक  आकर  होंसला बढ़ाते  है
सिलेबस   के साथ - साथ कंप्यूटर  भी  सिखलाते है
 
जो न समझे  इनका  प्यार है  उनका ये सब भूल 
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
दूर - दूर से बच्चे  आकर  होंसला  बढ़ाते  है
अपने  माता - पिता  को  आज्ञा  का आश्रय करते हैं
 
छोटा सा  गाव में  मेरा  यह स्कूल 
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
  
लिखिका -
 
मनीषा कुमारी
ग्राम /पोस्ट  मेहथ
झांझरपुर , मधुबनी ,
बिहार
 

आदत.. मुस्कुराने की: सरकार हमसे उम्मीद कर रही है की हम बिजली बचायेंगे.

आदत.. मुस्कुराने की: सरकार हमसे उम्मीद कर रही है की हम बिजली बचायेंगे.

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

आत्मज्ञानी कौन

धर्मशास्त्र कहते हैं कि आत्मज्ञानीवह है, जो सभी विकारों से मुक्त होता है। हमारे अंदर विकार होने से हमें आत्मज्ञान कदापि नहीं प्राप्त हो सकता। इस संदर्भ में एक कथा है-

एक बार महर्षि वेदव्यासऔर उनके पुत्र शुकदेववन जा रहे थे। एक सरोवर में कुछ देवकन्याएं स्नान कर रही थीं। आगे-आगे शुकदेवऔर पीछे-पीछे महर्षि वेदव्यास।शुकदेवजब उधर से गुजर रहे थे, तो देवकन्याएं पूर्ववत नहाती रहीं। उन्होंने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब महर्षि गुजरने लगे, तो वे शर्मा गईं और कपडों से बदन ढंक लिया। यह देखकर महर्षि ने आश्चर्य प्रकट करते हुए उन लोगों से पूछा, अभी कुछ पल पहले मेरा पुत्र वहां से गुजर रहा था, तो तुम लोगों ने उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया। मैं तो वृद्ध हो चुका हूं, तब भी मुझे देखकर इस तरह शर्मा रही हो? देवकन्याएं बोलीं, शुकदेवकी दृष्टि आत्मस्थहै। उन्हें संपूर्ण जगत में केवल आत्मतत्व ही दिखाई देता है। इसलिए उन्हें देखकर हमें लज्जा का भाव पैदा नहीं हुआ। महर्षि आप महाज्ञानीहैं, लेकिन आपकी दृष्टि में सारा संसार बसा हुआ है, इसलिए आपको देखकर हममें लज्जा का भाव पैदा हो गया। महर्षि भी समझ गए कि उनका पुत्र शुकदेवकोई साधारण साधक नहीं है, बल्कि एक उच्च कोटि का ब्रह्मज्ञानीहै। ऐसे ब्रह्मज्ञानीके लिए संसार में कोई कर्तव्य शेष नहीं रह जाता है। भगवान श्रीकृष्ण भी गीता में कहते हैं- जो मनुष्य सारी इच्छाओं को त्याग देता है और लालसा रहित होकर कार्य करता है, उसे ही शांति मिलती है। ऐसे साधक प्रवृति के लोग ही आत्मज्ञानीया ब्रह्मज्ञानीकहे जाते हैं।

बौद्ध दर्शन में कहा गया है- ब्रह्मत्वको प्राप्त करना ही पूर्णता है। यह तभी संभव है, जब मनुष्य सारे विकारों से छूट जाता है। गीता में इसी को स्थितिप्रज्ञ कहा गया है। जब तक हम विकार से रहित नहीं होते हैं, तब तक संासारिकताके चक्रव्यूह में फंसे रहते हैं। हमें न तो आत्मज्ञान हो पाता है और न ही मनुष्य जन्म के मूल लक्ष्य की ही तरफ आगे बढ पाते हैं। ऐसा नहीं है कि गृहस्थ जीवन में रहकर या गृहस्थ जीवन से छूटकर ही आत्मज्ञान मिलता है। राजा जनक गृहस्थ जीवन बिताने के बावजूद आत्मज्ञानीथे। उन्हें ब्रह्मत्वप्राप्त हो गया था। इसके उलट करोडों लोग गृहस्थ जीवन त्याग कर भी आत्मज्ञानीनहीं हो सके। मतलब हमारी साधना पर निर्भर करता है कि हम लक्ष्य प्राप्त कर पाते हैं कि नहीं। संत तुलसीदास कहते हैं कि आत्मज्ञान के लिए प्रभु की कृपा और पुरुषार्थ दोनों आवश्यक है। जप, तप, ज्ञान, उपासना, स्तुति और सच्ची भक्ति से ही मन से विकार दूर हटते हैं और सद्भाव जाग्रत होते हैं।

सोमवार, 10 जनवरी 2011

नैनो परिवार, व्यस्त लाइफस्टाइल और बिजी कपल्स, तन्हा न रह जाए बच्चा

अतिदीप सेंवथ में पढ़ने वाला बच्चा, छुट्टी उसे खराब लगती है क्योंकि इस दिन स्कूल नहीं होता, दोस्त नहीं मिलते और दिन नहीं कटता। दिन भर कंप्यूटर या टीवी ही एकमात्र सहारा था समय गुजारने का। मां सात बजे ऑफिस से आतीं, पापा नौ बजे। बड़ी बहन थी, पर वह अपनी दुनिया में व्यस्त रहती। उसकी बातें उसकी समझ से दूर थीं। इंजीनियरिंग के फाइनल इयर की स्टूडेंट होने के कारण उसे समय था भी नहीं।
दादी थी नहीं, नानी दूसरे शहर में थी। चाची से मां की बनती नहीं और मौसी का घर दूर होने के कारण आए दिन वहां जाना संभव नहीं था। बेचारा मन मसोस कर रह जाता। उसे चार साल की नन्ही उम्र से पता था कि उसे बाहर नहीं निकलना, किसी के लिए दरवाजा नहीं खोलना और किसी पर भरोसा भी नहीं करना। एकाएक ही वह बचपना छोड़ मेच्योर हो गया। सवाल इस बात का नहीं कि वह अकेलापन महसूस करता है बल्कि मुश्किल यह है कि उसके जैसे बच्चों की संख्या अनगिनत है। रिश्तों की अहमियत से आज का बच्चा अनजान है। पहले परिवार संयुक्त होते थे। स्त्रियां भी कमकाजी नहीं थीं, जो थीं उनके बच्चे परिवारजनों के सुरक्षात्मक माहौल में आसानी से पल जाते थे। चाचा-बुआ के बच्चों का फर्क को कभी इन्होंने जाना नहीं। सबको एक सा खाना-पीना मिलता और एक साथ चहकना व खेलना। वे सुहाने दिन, छोटी-छोटी बातों पर झगड़ना और फिर झट से मान जाना। ये रिश्ते की मीठी यादें ही ताजिंदगी नहीं भूलतीं और आपसी प्यार को बनाए रखती हैं।
रीमा की मां ने दूसरे बच्चे को जन्म देने के बारे में कभी गलती से भी नहीं सोचा क्योंकि इसके जन्म के समय में ही उसे कम मुश्किलें नहीं झेलनी पड़ी थीं। एक साल के लिए नौकरी से लम्बी छुट्टी साथ ही कभी किसी रिश्तेदार को बुलाओ तो कभी दूसरे के नखरे उठाओ। ऐसे में दूसरे के बारे में सोचना भी असंभव था। आज वही रीमा अलग-थलग अपने में चुपचाप रहती है। स्कूल में भी उसकी दोस्ती किसी से नहीं। मनोचिकित्सक का कहना है कि बचपन में हुई परवरिश का असर सारी जिंदगी दिमाग पर हावी रहता है। इसीलिए संसार भर में संबंधों की अनिवार्यता को लेकर तमाम तरह से बल दिया जाता है। यहां तक कि पश्चिमी संस्कृति में, जहां रिश्तों की कद्र नहीं थी, अब अहमियत को समझा जा रहा है। मां-बाप सारी जिंदगी किसी के नहीं रहते, इसलिए परिवार अकेले बच्चे से नहीं बनेगा। हो सकता है कि वह इंडिपेंडेंट ज्यादा बने लेकिन अकेलापन तो दूर नहीं कर पाएगा।
आज जरूरत है इसी स्नेह और मिठास को बनाए रखने की। समय के साथ जरूरतें भले ही कितनी भी बदल जाएं, रिश्ते हमेशा जिंदा रहते हैं। वक्त-जरूरत पर ये ही अपने काम आते हैं। जिंदगी को मुकम्मल बनाने के लिए अपनों का साथ जरूरी है। अब वक्त आ गया है जब हमें अपने बच्चों को रिश्तों को निभाना ही नहीं, जीना भी सीखाना पड़ेगा, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
रिश्तों की बेहतरी के लिए पेरेंट्स क्या करें
बच्चों की परवरिश में क्वालिटी टाइम लगाएं व बच्चे का दृष्टिकोण व्यापक करें, उसे रिश्तों की अहमियत समझाएं। याद रखें कि घरेलू रिश्ते मधुर होने पर ही सामाजिक जीवन बेहतर बनता है।
बहुत मजबूरी न हो तो परिवार को अति सीमित न रखें। बच्चों को बड़ों के प्रति संवेदनशील व उदार बनाने में सहयोग दें।बच्चों को बाहर ले जाएं या गेट टु गेदर करें जिससे वे सोशल बनें और मिलना-जुलना सीखें।अपने बच्चों के साथ कम्युनिकेशन बनाए रखें जिससे वह आपसे हर बात शेयर कर सकें।बच्चे को जिम्मेदार बनाने का मतलब यह नहीं कि उसमें शेयरिंग की भावना न हो। उसे मिल-बांट कर रहना सिखाएं।बच्चे के दोस्तों को समझों जिससे उसके माहौल के सही या गलत होने की जानकारी आपको रहे। इमोशनल बांडिंग को बनाने और मजबूत करने में सहयोग दें।हमेशा याद रखें कि बच्चा कहीं न कहीं आपका ही अनुसरण कर रहा होता है, इसलिए अपने व्यवहार को सयंमित रखें।छोटी-छोटी खुशियों में परिवार के साथ एंजॉय करना सीखें और सिखाएं।परिवार भले ही सीमित हुए हों लेकिन मॉडर्न टेक्नोलॉजी ने दूर से रिश्तों को निभाना भी आसान किया है। इसका फायदा लेना सिखाएं।

शनिवार, 1 जनवरी 2011

आबि गेल नब वर्ष -किशन कारीगर

आबि गेल नव वर्ष।

प्रणाम-प्रणाम औ भाई कि भेल औ भाई
हृदयक स्नेह पठा रहल छी औ भाई।
आबि गेल नव वर्ष मंगलमय संसार हुए
विश्व शांति लेल मंगल कामना करैत छी औ भाई।।

नव वर्षऽक नएका-नएका बसंती उमंग
सभ मिली बनभोज करब दोस महीमक संग।
हम बजाएब ढ़म ढ़म ढ़ोल अहॉ गाउ गीत
कक्का खुशी सॅं बजा रहल छथि मृदंग।।

कक्का बजलाह कहू की हाल-चाल
काकी बजलीह आबि गेल नवका साल।
आई सभ मिली एक संगे खशी मनाएब
हृदयक स्नेह हम सभ केॅं पठाएब।।

नवका आंगी नवका नुऑं
नवकी कनियॉं पुरी पकाबैए।
बुढ़बा बाबा बड़-बड़ बाजैए
धिया-पूता खूम उधम मचाबैए।।

पठबैत छी किछू नव-नव सनेश
ई सनेश अहॉं सहज स्वीकार करू।
नव वर्षऽक अछि सादर शुभकामना
सदखनि अहॉं हॅसैत मुस्कुराइत रहू।।

जहिना चमकै छै चकमक चॉंद
ओहिना अहॉं चमकैत रहू।
एतबाक करैत छी हम कामना अपना माटि-पानि लेल
किछू सार्थक काज करैत रहू।।
लेखक:- किशन कारीग़र