(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

शनिवार, 11 नवंबर 2017

हम मूर्ख समाजक वाणी छी

|| हम  मूर्ख  समाजक वाणी छी || 
हम  मुर्ख समाजक वाणी  छी  | 
ज्ञाता जन छथि सदय कलंकित 
हमहीं  टा    बस   ज्ञानी    छी || 
                     हम  मुर्ख ---  || 
रामचंद्र    के   स्त्री    सीता  
तकरो      कैल    कलंकित  | 
कयलनि डर सं अग्नि परीक्षा 
भेला    ओहो    शसंकित    || 
एक्कहि  ठामे  गना दैत  छी 
सुर   नर   मुनि  जे   ज्ञानी | 
हम कलंकित सब  के कयलहुँ 
देखू      पलटि     कहानी  ||  
बुद्धिक-बल   तन  हीन  भेल 
बस आप  नौने  सैतानी छी | 
                  हम  मुर्ख ---|| 
बेटा  वी. ए. बैल हमर अछि 
हम   फुइल    कय  तुम्मा  | 
नै  केकरो  सँ  हम  बाजै छी 
बाघ   लगै    छी    गुम्मा  || 
अनकर  बेटा   कतबो बनलै 
 रहलै       त         अधलाहे | 
अगले    दिन उरैलहुँ  हमहीं 
कतेक    पैघ     अफवाहे  || 
अपनहि मोने,अपने उज्ज्वल 
बस   हम   सब  परानी  छी | 
                   हम  मुर्ख ---  ||   
बाहर  के कुकरो  नञि पूछय 
गामक       सिंह       कहबी  | 
परक    प्रशंसा  पढ़ि  पेपर में 
मूँह    अपन     बिचकावी   || 
सदय इनारक फुलल  बेंग सन 
रहलों        एहन        समाज  |
आनक   टेटर  हेरि  देखय लहुँ 
अप्पन       घोलहुँ       लाज | | 
अधम मंच  पर बैसल हम सब 
पंडित  जन  मन  माणि  छी | 
                        हम  मुर्ख --- ||  
गामक    हाथी  के  लुल्कारी  
जहिना      कुकर     भुकय  | 
बाहर   भले  देखि कय हमर 
प्रभुता    पर   में     थुकय  || 
अतय   सुनैने  हैत ज्ञाण की 
वीघर  छी   कानक     दुनू  |
 कोठी  बिना अन्न केर बैसल 
ओकर     मुँह    की    मुनू  || 
हम  आलोचक   पैघ सब सँ 
हमहीं     टा      अनुमानी  || 
                 हम  मुर्ख --- || 
माली  पैसथि  पुष्प  वाटिका 
सिंचथि        तरुवर       मूल | 
पंडित   पैसथि  पुष्प  वाटिका 
लोढथि      सुन्दर      फूल  | | 
लकरिहार  जन  लकड़ी  लाबय 
चूइल्ह       जेमबाय      गामें  |
 सूअर    पैसय    पुष्प  वाटिका 
विष्ठा         पाबय       ठामे  || 
जे अछि  इच्छु  जकर तेहन से 
दृष्टि      ताहि    पर     डारय | 
मूर्खक  हाथ  मणि अछि पाथर 
ज्ञानी       मुकुट      सिधारय  || 
"रमण " वसथु जे एहि समाज में 
मर्दो    बुझू      जनानी      छी  | 
हम   मुर्ख समाजक  वाणी  छी 
                       हम  मुर्ख ---|| 
 रचनाकार -:


रेवती रमन झा "रमण " 
गाम- जोगियारा पतोंर दरभंगा ।
मो - 9997313751 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें